किन संग , कटु न बोलिये
( तर्ज : आज मी ब्रह्म पाहिले ... )
किन संग , कटु ना बोलिये ;
किन संग , कटु ना बोलिये ।
मानव - जन्म दीन्ह रघुबरने ।
सोच - समझ करके ,
दुनियाँके ,
नजरों झूलिये ! ॥ टेक ॥
जितना बनता कर उपकारा ।
कम खर्चे में करो गुजारा ॥
व्यसनाधिन इंद्रिय यह सारा ।
सत् से तोलिये ! ॥
किन सँग ... ॥१ ॥
दुनिया की हो अट - सट बातें ।
सह लेना मन क्रोध न आते ॥
फिर भी प्रेम करो अपनाके ।
भूलके गालिये ! किन सँग ... ॥२ ॥
सरल स्वभाव प्रीत नयनन में ।
प्रभू - भक्ति बानी में , मन में ।।
तुकड्यादास कहे , जीवन में ।
सुखसे डोलिये ! ॥
किन सँग ... ॥३ ॥
राजगोपाल मंदिर , अयोध्या ;
दि . १३-८-६२
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा